लेखनी कहानी -01-Sep-2022 सूर घनाक्षरी विधान,२- हिन्दी हमारी शान 3- शिक्षक समाज का दर्पण, 4-श्रद्धेय

भाग-4 हिन्दी दिवस प्रतियोगिता हेतु

श्रद्धेय माँ हिन्दी
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साहित्य शिरोमणि माँ हिंदी शीश मुकुट सी सजती है
हर जन के मुख पर स्वर सरगम धुन सी बजती हैं
हर मानव के मन मंदिर में दिया बाती सी जलती है 
श्रद्धेय हमारी माँ हिंदी मेरे रग-रग में बसती है। 


वर्णमाला जिसकी सुंदर वावन वर्ण रुप पुष्पों से सजती है
स्वर की पंक्ति में ग्यारह स्वर और दो अयोगवाह से सजती है 
दो नव विकसित वर्ण भी आए रस अलंकार से सजती है
श्रद्धेय हमारी माँ हिंदी मेरे रंग रंग में बसती है।


स्पर्श, ऊष्म, अंतस्थ व संयुक्ताक्षर मिल ये माला गढ़ती है 
संज्ञा सर्वनाम व विशेषण क्रिया ही कुछ कर सकती 
शुद्ध व्याकरण की क्षमता भाषा में दम खम भरती है। 
श्रद्धेय हमारी माँ हिन्दी मेरे रग रग में बसती है।


आलका ने दृढ़ संकल्प लिया कारज हिन्दी में करती है 
हिन्दी की आभा गरिमा बिन्दी बन भाल पर मेरे सजती है
तेरे प्रकाश पुंज का गौरव संस्कार देवनागिरी ही जनती है 
श्रदेय हमारी माँ हिंदी मेरे रग-रग में बसती है


देव भाषा संस्कृत की दुहिता हिन्दी की महिमा महती है
संपूर्ण विश्व में बोली जाती तीजे स्थान पर रहती है
बडे साहित्यिक जन की प्रियतमा प्यार सभी को  करती है।
श्रद्धेयय हमारी माँ हिन्दी मेरे रग-रग में बसती है।


अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी'
लखनऊ उत्तर प्रदेश।
स्व रचित मौलिक व अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।

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13 Comments

Swati chourasia

07-Sep-2022 02:28 PM

वाह बहुत ही बेहतरीन लाजवाब 👌👌👌👌👌👌

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लाजवाब लाजवाब लाजवाब लाजवाब

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